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57. मिस्र देश में बंदी बनाया गया ५
(घोड़ों के टापों की आजाज)
यूसुफ सारे मिस्र में राजा के एक रथ में सवारी करता था | प्रत्येक व्यक्ति हाथ हिलाकर उस का अभिवादन करता था | फिरौन ने उसे अपना सहायक नियुक्त किया था | उस ने अपनी गोल अँगूठी की मुहर लगा कर यूसुफ को अपना अधिकार दिया था | यूसुफ पकी हुई फसल के खेतों और खजूर के बागों के पास से गुजरता था |
जैसा परमेश्वर ने कहा था वैसे ही हुआ : बड़ी फसल उभर आई |
(पुष्ठ भूमि में ठोकने और खटखटाने की आवाज)
यूसुफ ने कई गोदाम बनाये | भारी मात्रा में अनाज गोदामों में रखा गया | यूसुफ की योजनायें परिपूर्ण थीं | और जैसा उस ने कहा था, अकाल के सात साल, बहुतायत के सात साल के बाद आ गये | लोग भूखे हो गये और फिरौन के पास चले गये |
लोग: “मैं भूखा हूँ ! हम भूखे मर रहे हैं | हमारे बच्चों को कुछ खाने को दो |”
फिरौन: “यूसुफ तुम्हारी सहायता करने के लिये ज़िम्मेदार है | वह जैसा कहे वैसा करो |”
वे हर जगह से आ गये, यहाँ तक कि परदेश से भी | दस लोग उस के सामने झुक गये | उस ने उन्हें तुरन्त पहचान लिया | वे उस के भाई थे | यूसुफ ने अपने स्वप्न के विषय में सोचा, उन की उस के लिये घ्रणा और यह कि उन्हों ने उसे एक दास के समान बेचा था, परन्तु उन्हों ने उसे नहीं पहचाना |
यूसुफ ने कठोरता के साथ उन से पूछा :
यूसुफ: ”तुम कहाँ से आये हो ?”
भाई: “हम कनान देश से आये हैं और अनाज खरीदना चाहते हैं |”
यूसुफ: ”तुम झूट बोल रहे हो | तुम भेदिए हो !”
भाई: ”नहीं, हम सच कहते हैं ! हम बारह भाई हैं | एक अभी घर में है और दुसरा मर गया |”
यूसुफ: “मैं तुम्हारे एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता | परन्तु इस लिये कि मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ, मैं तुम्हे अनाज दुंगा | परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम अपने भाई के साथ दोबारह आओ | तुम में से एक यहाँ रहेगा ताकि यह निश्चित हो जाये कि तुम मेरी आज्ञा का पालन करोगे |”
यूसुफ इतना कठोर क्यों था ? क्या वह उन से बदला लेना चाहता था ? नहीं ! वह अपने भाईयों को केवल परखना चाहता था | वह जानना चाहता था कि उन मे परिवर्तन आया भी है या नहीं | उन्हें कल्पना न थी कि जब वे एक दूसरे के साथ बातें कर रहे थे तब यूसुफ उन्हें जान गया था |
भाई: “हम ने यूसुफ के साथ जो कुछ भी किया, निश्चय ही उसी कारण हमें यह दंड दिया जा रहा है |”
यूसुफ ने जब यह सुना तो रो पड़ा | परन्तु अब तक उस ने उन्हें यह नहीं बताया कि वह कौन है | जितना अनाज उन्हें चाहिये था उतना ले कर वे भाई घर लौटे और शमौन मिस्र में रुका रहा |
पिता, याकूब ने उन के प्रवास का विस्तृत विवरण सुना तो भयभीत हो गया | परन्तु जब वे अनाज खा चुके, तब उन्हें वापस मिस्र जाना पड़ा और अब की बार वे बिन्यामीन के साथ गये | जैसे वे दोबारह मिस्र के निकट पहुँचे, वे डर गये |
और तब ? अगला ड्रामा तुम्हें बतायेगा कि क्या हुआ |
लोग: वर्णनकर्ता, लोग, फिरौन, यूसुफ, भाई
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