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नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
बच्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक
54. कोई रोता है, दूसरे बनावटी हंसी हँसते हैं २घर से बहुत दूर उत्तर ईस्राएल में दस भाई अपने पिता की भेड़ों पर पहरा दे रहे थे जो चरागाह में चर रही थीं | (भेड़ों की मिनियाहत की आवाज) उन के छोटे भाई की ईर्ष्या उन्हें परेशान कर रही थी | पहला भाई: “आज कल स्वप्न देखने वाला यूसुफ क्या कर रहा है ?” दूसरा भाई: “परमेश्वर ने शायद यह बताया कि वह एक प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा | और हमें उस के सामने झुकना पड़ेगा | हाहा, यह अत्यन्त हास्यप्रद बात है जो मैं ने कभी सुनी थी |” पहला भाई: “मुझे अभी भी उस सुन्दर कोट के विषय में जलन हो रही है जो पिताजी ने उसे दिया |” दूसरा भाई: “हम उस विषय की बात ही न करें | वह हमें केवल परेशान करती है | भेड़ों के लिये हरी भरी चरागाहें ज्यादा महत्वपूर्ण हैं |” घर पर उनका पिता अपने पुत्रों के विषय में सोच रहा था | पिता: “यूसुफ मुझे तुम्हारे भाईयों की चिंता हो रही है | हम नहीं जानते कि वे सुरक्षित और सही सलामत हैं भी या नहीं ? संभव है जंगली प्राणियों ने भेड़ों पर आक्रमण किया हो | तुम उन के पास जाओ और देखो कि वे सलामत हैं या नहीं |” यूसुफ को पाँच बार यह कहने की आव्यशक्ता नहीं होती कि वह क्या करे | कोई शिकायत किए बिना उस ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया | यूसुफ को कई मील पैदल चलना पड़ा | उस के भाईयों ने उसे दूर से देखा | पहला भाई: “देखो वह स्वप्न देखने वाला आ रहा है | अरे भाईयो, आओ हम उसे मार डालें |” दूसरा भाई: “ऐसा न करो | इस के बदले उसे कुंए में फेक दो |” सब से बडे भाई, रुबन का अन्तकरण उसे कोसने लगा | वह अपने भाई को बचाना चाहता था | यूसुफ निकट आ गया | उसे उन की भयानक योजनाओं की कोई जानकारी न थी | यूसुफ: “भाईयो, तुम्हें शांति मिले | तुम कैसे हो ?” पहला भाई: “उस से तेरा कोई संबन्ध नहीं | इसी समय तेरा कोट मुझे दे दे | और तब हम तुझे बताएँगे कि कुआँ नीचे से ऊपर कैसा दिखाई देता यूसुफ: “नहीं ! मुझे जाने दो ! मैं ने कब कोई गलत काम किया ?” (उस के गिरने की आवाज) भाग्य से कूएँ में कुछ भी पानी न था परन्तु वह इतना गहरा था कि यूसुफ स्वय : उस में से निकल नहीं सकता था | यूसुफ: “सहायता करो ! सहायता करो ! मुझे यहाँ से निकाल लो ! सहायता करो | मैं निकलना चाहता हूँ | क्या तुम मुझे सुन रहे हो ? सहायता उस के भाई छाओं में बैठे, हँसते हुए कुछ खा रहे थे | अचानक ऊंटों का एक काफिला वहाँ आ पहुँचा | व्यापारी अपना सामान मिस्र ले जा रहे थे | पहला भाई: “मुझे एक कल्पना सूझी है | आओ हम यूसुफ को बेच दें |” दूसरा भाई: “यहूदा, तुम्हारी कल्पना कितनी महान है | तब हम उस से छुटकारा पायेंगे और पैसे आपस में बाँट लेंगे |” उन्हों ने ऐसा ही किया | भाईयों ने युसुफ को चांदी के बीस सिक्कों में परदेश में दास बन कर जाने के लिये बेच दिया | उन्हों ने उस का सुन्दर कोट संभाल कर रखा और उसे अपने पिता के पास वापस ले कर आ गये | उस पर खून लगा हुआ था | पहला भाई: “पिताजी, हमें यह मिला | क्या यह यूसुफ का कोट नहीं था ?” पिता: “हाँ | किसी जंगली जानवर ने उसे फाड दिया होगा | वह मर गया है ! मेरा पुत्र, यूसुफ, मर गया है |” उन्हों ने अपने पाप पर झूट बोल कर परदा डाल दिया और उन के पिता ने उन पर विश्वास किया | उन के दिलों से केवल बुराई ही निकल आई | परन्तु यूसुफ के लिए परमेश्वर ने उसे भलाई में बदल दिया | मुझे आश्चर्य हो रहा है कि अगले ड्रामे में यह कहानी कैसे जारी रहेगी | क्या तुम्हें भी ऐसा ही लग रहा है ? लोग: वर्णनकर्ता, दो भाई, यूसुफ, पिता © कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी |