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नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
बच्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक
43. सुसमाचार २बाजार तक चलने ने थका दिया | तारा और उस की माँ ने शकरकंद से भरी हुई टोकरियाँ अपने सर पर उठाई थीं | उन को आशा थी कि उन्हें बहुत पैसे मिलेंगे और तब गौतम की पत्नी आपनी बेटी के लिये नया पोशाक खरीदेगी | उस के पास जो एक मात्र ड्रेस था वह पुराना हो गया था और उस में छेद पड़ गये थे | तारा के माता पिता गरीब थे | उस के पिता दुष्ट आत्माओं को सब से उत्तम बलि चढाते थे परन्तु इस के बदले में उन्हें अपने दिल में कभी शांति न मिली | अचानक तारा के मन में मरियम का विचार आया | उस की सहेली अब कोई तावीज़ अपने पास नहीं रखती थी क्योंकि अब वह मसीही बन गई थी | अंत में वे बाजार तक पहुँच गये | वहाँ बहुत कुछ हो रहा था | विक्रेता: “ताज़ी सब्जियां ! सब से अच्छी फल्लियाँ !” विक्रेता: “नई फसल में से आई हैं |” विक्रेता: “सस्ती – यहाँ सब कुछ सस्ता है |” गौतम की पत्नी ने आपनी टोकरी एक आदमी के सामने रख दी | उस ने उस की फसल की अच्छी तरह से छान बीन की | विक्रेता: “मैं ने यही सोचा था, इस में कीड़े हैं ! शकरकंद में कीड़े हैं !” निराश हो कर और अपने पास केवल थोड़े पैसे होने के कारण श्रीमती गौतम ने अपना सामान ख़रीदा | परन्तु तारा को एक आश्चर्यकर्म का अनुभव हुआ ! एक मैत्रीपूर्ण आदमी ने उस की टोकरी में के सभी शकरकंद खरीद लिये | उसे यह जानकारी न थी कि उस की सहेली इसी आदमी के द्वारा मसीही बनी | जो पैसे उसे मिले, उस से तारा ने अपने लिये एक सुन्दर पोशाक ख़रीदा | बाद में वह फिर से विजय को मिली | तारा: “देखो, उस आदमी ने मेरे शकरकंद ख़रीदे | उस के हाथ में किस प्रकार की पुस्तक है ?” तारा और उस की माँ खामोश खड़े होकर उस आदमी को जो लोगों से कुछ कह रहा था, सुन रही थीं | विजय: “मेरे पास तुम्हारे लिये अच्छा समाचार है | परमेश्वर तुम से प्रेम करता है और तुम्हारे दिल को शांति देना चाहता है ताकि तुम्हें कभी भयभीत होना न पड़े |” श्रीमती गौतम: “तारा, मैं विश्वास करती हूँ कि वह सच बोलता है |” जादूगर गौतम ने जब सुना कि उस की पत्नी ने विजय की बातें सुनी तो वह क्रोध से चींखा | गौतम: “विजय ने तुम्हें उत्तेजित किया है | उस पर विश्वास न करो | आत्मायें हम पर पलट कर आयेंगी |” श्रीमती गौतम: “गौतम, मेरे दिल में शांति आई है | विजय का परमेश्वर, दुष्ट आत्माओं से अधिक शक्तिशाली है |” उसी समय गौतम ने तारा का नया पोशाक लिया और उसे चिन्दियों की गुडिया बना दिया और उस में बहुत सी सुइयां घुसा दीं | गौतम: “यह विजय है | उसे मरना होगा | यह सुइयां ऐसा करेंगी |” तारा को दु:ख हुआ | उस के पिता ने इस से पहले कभी ऐसा न किया था | शक्तिशाली कौन है ? जादूगर का शाप या यीशु ? यह जानने के लिये अगला ड्रामा सुनिए | लोग: वर्णन कर्ता, श्रीमती गौतम, तारा, विक्रेता, विजय, गौतम © कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी |