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140. स्वप्न देखने का काम १
जरा संभल के, चाय गरम है | (चाय की प्याली में चमच हिलाने की आवाज)
हडसन ने अपनी जीभ करीब करीब जला ली थी | इंगलेंड के हडसन परिवार के लिए यह चाय का समय था | और वह, उन दिनों में, लग भग १५० साल पहले, बहुत ही प्रसन्नताप्रद समय था |
उन के पिता उन दिनों में उन्हें हमेशा चीन जैसे दूर के देश के विषय में बताया करते थे | अचानक वह गंभीर हो गये |
पिता: “मैं यह समझ नहीं रहा | चीन देश को अधिक मिशनरी क्यों नहीं जाते ? लाखों चीनी लोगों को यीशु के विषय में कुछ भी बताया नहीं गया है |”
हडसन: “पिताजी, जब मैं ऊँचा हो जाऊंगा तब मिशनरी बनुंगा और चीन जाऊँगा |”
उस के माता पिता इस पाँच वर्षिय पुत्र के शब्द सुन कर मुस्कराये | वह अक्सर बीमार रहा करता था और मिशनरी बनना उस के लिये असंभव
था | हडसन स्कूल नहीं जा सकता था इस कारण उस की माँ ने उसे घर पर ही पढाया |
हडसन किताब का कीड़ा था |
हडसन: “यदि मैं रात को बिस्तर पर ही पढ़ सकूँ | परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता कयोंकि माँ दिया अपने साथ ले जाती हैं | मैं पुरानी मोम बत्तियों के टुकड़े ढूंड निकालूँगा |”
उस दिन शाम को उस ने गुड नाईट कहने से पहले गुप्त रीती से अपनी पेंट के पाकिट भर लीये और अपने कमरे में गायब हो गया | परन्तु कितना दुर्भाग्यपूर्ण ! परिवार के एक अतिथि ने उसे पकड़ा और अपनी गोद में लिया | और वह खुली अंगीठी के पास बैठा हुआ था ! हडसन का शरीर बहुत गरम हुआ और वैसे ही मोम बत्ती के टुकड़े भी गरम हुये | वह कुछ मिनट उसे कुछ घंटों के समान लगे |
माँ: “हडसन, अब सोने का समय हो गया है |”
हडसन: “गुड नाईट !”
उस के कुछ ही समय बाद, उस की माँ ने उसे उस के कमरे में पाया जब कि उस के दोनों पाकिट मोम बत्तियों से भरे हुए थे | हडसन को खेद हुआ कि वह अपनी माँ की पीठ के पीछे कुछ कर रहा था | उस ने फिर कभी ऐसा नहीं किया |
इस किताब के कीड़े को एक और शौक था : अपनी बहन एमेली को क्रोधित करना |
परन्तु अधिक समय वह एक दुसरे के साथ रहते थे और मिल कर खटमल और पक्षियों का परीक्षण करते | जब हडसन १३ साल का था तब उस ने औषधि के विज्ञान का अभ्यास शुरू किया | उस ने अपने भविष्य के लिये बड़ी योजनायें बनाईं |
परन्तु एक छुट्टी के दिन ने उस का पूरा जीवन बदल दिया | उस ने एक मसीही पुस्तक पढ़ी और अचानक वह समझ गया कि हडसन से अपने प्रेम के कारण यीशु मर गये और आप का पुनरुत्थान हुआ |
हडसन: “प्रभु यीशु, मुझ से प्रेम करने के लिये धन्य वाद | मैं आप का होकर जीना और जो आप कहें वह करना चाहता हूँ | आमेन |”
उस ने यह प्रार्थना करने के बाद, मानो यीशु ने कहा हो : तो फिर मेरे लिये चीन चले जाओ |
जब वह केवल पाँच साल का था तब से मिशनरी बनना उस की सब से बड़ी इच्छा थी |
जब वह १७ साल का हुआ तब वह अपने आप को अपने भविष्य के लिये तैयार करता रहा |
हो सकता है उस का प्रशिक्षण तुम्हें प्रोत्साहित करे |
अगले ड्रामे में मैं तुम्हें और बातें बताऊंगा | तुम यह अवसर खोना न चाहोगे !
लोग: वर्णनकर्ता, पिता, हडसन, माँ
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