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152. एक दूसरे को दे दो २
जी नहीं, जब उन चार बीमार और भूके कुष्ट रोगियों ने शत्रु की छावनी में झांक कर देखा तब यह अपेक्षा नहीं की थी |
पहला कुष्ट रोगी: “क्या मैं ठीक से देख रहा हूँ ? यह सच नहीं हो सकता !”
दूसरा कुष्ट रोगी: “परन्तु हाँ ! छावनी खाली है | शत्रु चले गये !”
पहला कुष्ट रोगी: “हो सकता है यह एक फंदा हो |”
परन्तु वह फंदा नहीं था | आरामियों ने सामरिया नगर की बहुत दिनों से घेरा बंदी की थी और ईस्रएलियों को भूका रखने का प्रयत्न कर रहे थे, वे अब दिखाई नहीं दे रहे थे |
उन्हें किस ने निकाल दिया ?
पवित्र शास्त्र हमें यह रहस्य बताता है | जीवित परमेश्वर ने उन्हें भारी सेना की सी आवाज सुनाई | और उन्हों ने सोचा कि ईस्राएल ने दूसरी सेनाओं से मेल मिलाप किया है इस लिये वे अपना सब कुछ, धड़कते हुए दिल के साथ छोड़ कर, जितनी तेज गति से हो सका, भागते हुए चले
गये |
परमेश्वर ने यह आश्चर्यकर्म शाम के समय किया, ठीक उस समय जब वे चार कुष्ट रोगी शत्रु को आत्म समर्पण करने चले गये |
वे मृत्यु की अपेक्षा कर रहे थे परन्तु उस की बजाय उन्हों ने जीवन पाया |
पहला कुष्ट रोगी: “इतना सारा आहार ! मैं अब भी विश्वास नहीं कर सकता |”
दूसरा कुष्ट रोगी: “क्या ही अच्छा उपहार ! देर्खो ! कपड़े, सोना और चांदी |”
उन्हों ने खाया और पिया | वे सारी छावनी में घूमे जैसे स्वप्न में घूम रहे हों |
पहला कुष्ट रोगी: “हम जो कर रहे हैं वह ठीक नहीं है | हम केवल अपने लिये ही नहीं सोच सकते | हमें यह अच्छा समाचार उन लोगों को भी बताना चाहिये जो नगर में हैं | कयोंकि यदि हम चुप रहे तो दूसरे भूक से मर जायेंगे | और तब हम उन की मृत्यु के लिये अपराधी ठहरेंगे |”
राजा ने पहले तो यह सोचा कि यह समाचार शत्रु की चाल है परन्तु सब नगर वासी नगर से बाहर निकल पड़े और देखा कि यह समाचार सच्चा था और उन्हों ने आरामीयों की छावनी को लूटा | जिस अधिकारी ने परमेश्वर का मजाक उड़ाया था उसे नगर के फाटक पर रौंद कर मार डाला गया |
सब कुछ वैसे ही हुआ जैसे परमेश्वर ने कहा था कि होगा |
किसी ने अच्छा समाचार पहुँचाया : जिस किसी ने विश्वास किया वह बच गया | कितना अच्छा हुआ जो वह एक व्यक्ति चुप न रहा |
मुझे यीशु के वे शब्द याद आते हैं जो आप ने किसी समय कहे थे : मैं जीवित हूँ और तुम भी जीवित रहोगे |
आप चाहते हैं कि लोग जियें | केवल प्राण न बचायें, बल्कि हमेशा जीते रहें |
अब तक कई लोग यह नहीं जानते, इस लिये मैं यीशु के सुसमाचार का प्रसार करना चाहता हूँ | क्या तुम भी करोगे ?
लोग: वर्णनकर्ता, पहला कुष्ट रोगी, दूसरा कुष्ट रोगी
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