Home -- Hindi -- Perform a PLAY -- 044 (The witch doctor rages 3)
44. जादूगर का रट लगाना ३
तारा: “माँ, वर्षा शुरू होने को है |”
माँ: “यह बहुत अच्छा है, तारा, क्योंकि इस से धूल धुल जाती है |”
तारा: “हम ने विजय को नहीं देखा | क्या वह मर गया ?”
माँ: “मैं इस पर विश्वास नहीं करती |”
तारा: “परन्तु पिता जी ने कहा कि दुष्ट आत्मायें उसे मार डालेंगी क्योंकि वह हमेशा यीशु के विषय में बोलता रहता है |”
माँ: “मैं विश्वास करती हूँ कि उस का परमेश्वर शक्तिशाली है | ओह, मेरा पाँव |”
तारा की माँ फिसल गई और उस के पाँव में चोट आ गई | अब वह अपने घर वापस कैसे जा सकेगी ? मूसलाधार वर्षा में वे उस मिशनरी के घर पहुंचीं और दरवाज़ा खटखटाया | और दरवाज़ा किस ने खोला ? विजय ने, वह जीवित था |
विजय: “अन्दर आईये | तुम आग के पास अपना शरीर सुखा सकती हो |”
जब उस की माँ के पाँव का उपचार किया जा रहा था, तब तारा अचानक बोली :
तारा: “तुम मरने वाले हो | मेरे पिताजी ने तुम्हें मरने का शाप दिया है | मुझे डर लग रहा है ! हमें यहाँ नहीं रहना चाहिये |”
विजय: “तुम्हें डरने की कोई आव्यशक्ता नहीं है | यह शाप मुझे हानि नहीं पहुँचा सकता क्योंकि यीशु मेरे प्रभु हैं और आप मेरी रक्षा करेंगे |”
माँ: “विजय, मैं ने तुम्हें बाजार में बोलते हुए सुना | मैं ने तुम्हारे वचन पर विश्वास किया और तब से मेरे दिल में शांति आई है |”
इस बात चीत का उस की माँ पर अच्छा प्रभाव पड़ा, परन्तु तारा अब भी अपने पिता से डर रही थी | यदि उन्हों ने कभी यह सुना ... जब वे घर पहुँचे तो थके हुए थे | और मौसम और भी खराब होता गया | आँधी आई और वर्षा लगातार होती रही | नदी का पानी किनारे पर से बहने लगा, सड़कें बह गईं और कई दिनों तक कोई व्यक्ति बाहर न जा सका | (दरवाजा खटखटाने कि आवाज)
तारा: “कौन है ?” (दरवाजा खुलने की आवाज)
गौतम: “विजय, तुम यहाँ क्यों आये हो ?“
विजय: “चट्टान के टुकड़े गिरे हैं | मौसम खराब होने से चट्टान के टुकड़े टूट गये | घर से निकल जाओ नहीं तो तुम मिट्टी में गाड़े जाओगे |”
गौतम: “यह मूर्खता है | हम यहीं रहेंगे | आत्मायें हमारी रक्षा करेंगीं |”
विजय: “वे तुम्हारी सहायता न कर सकें गी | केवल जीवित परमेश्वर तुम्हारी सहायता कर सकता है यदि तुम उस पर विश्वास करो |”
गौतम: “मैं यह सुनना नहीं चाहता | चले जाओ ! मेरे घर के बाहर जाओ !”
इस से पहले कि विजय जाता, उस ने श्रीमस्ती गौतम का साहस बढ़ाया |
विजय: “श्रीमती गौतम, डरो नहीं,परमेश्वर तुम्हारे साथ है |”
विजय अभी घर से निकल ही गया था कि गौतम ने आपनी सब से बड़ी गंडासा नीचे उतारी और क्रोध में घर से निकल गया |
तारा: “पिताजी, ठहरिये, ऐसा न कीजिये !”
अगले ड्रामे में यह कहानी जारी रहेगी |
लोग: वर्णनकर्ता, माँ, तारा, विजय, गौतम
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