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नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
बच्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक
79. अनमोल(पानी के छिडकने की आवाज) मोती नकालने वाले भारती गोताखोर ने अत्यन्त कुशलता से समुद्र में छलांग लगाई | उस का प्रिय मित्र डेविड मोर्स, नाव में बैठे हुए, उस का भूरा सर फिर से पानी के ऊपर आने तक, उस की प्रतिक्षा कर रहा था | उस ने आपनी जेब के चाकू से सीपी को डेविड मोर्स: “राम भाऊ, तुम बहुत अच्छे गोताखोर हो | यह मोती बहुमूल्य है |” राम भाऊ: “हाँ, यह इतना बुरा नहीं है |” डेविड मोर्स: “क्या इस से बहतर मोती मिल सकता है ?” राम भाऊ: “मेरे पास घर पर एक मोती है जो अमूल्य है |” डेविड मोर्स: “मैं इस मोती को परिपूर्ण पाता हूँ | तुम्हारी आँखें इस की अधिक समीक्षा करती हैं |” राम भाऊ: “तुम अपने परमेश्वर के विषय में भी हमेशा ऐसे ही कहा करते हो | लोग समझते हैं कि वे ठीक हैं परन्तु तुम कहते हो कि परमेश्वर यह देखता है कि वे अन्दर से कैसे हैं |” डेविड मोर्स: “हाँ, वह सच है | परन्तु वह हर व्यक्ति को पवित्र दिल देना चाहता है | यह परमेश्वर का उपहार है | क्या तुम इसे समझते हो ?” इतने में यह दोनों मित्र समुद्र तट पर पहुँच गये | राम भाऊ: “डेविड, यह बहुत आसान नजर आता है | यह उपहार स्वीकार करने में मुझे अत्यन्त स्वाभिमान होता है | इसे प्राप्त करने के लिये मैं कुछ करना चाहता हूँ | क्या तुम वहाँ एक तीर्थ यात्री को देखते हो ? वह कलकत्ता पहुँचने तक नंगे पाँव से नोकदार पत्थरों पर से चलता हुआ जाएगा | मैं अपने घुटनों पर चल कर दिल्ली तक जाऊँगा |” डेविड मोर्स: “राम भाऊ, यह प्रवास ६०० मील से अधिक लम्बा है | अपना लक्ष्य प्राप्त करने तक तुम्हारे खून में विष हो जायेगा और तुम मर जाओगे |” परन्तु डेविड मोर्स ने जो कहा उस से कुछ लाभ न हुआ | कुछ दिन बीत गये | (खटखटाने की आवाज) डेविड मोर्स: “राम भाऊ, क्या तुम हो ? अन्दर आ जाओ |” राम भाऊ: “डेविड, कल मैं आपनी तीर्थ यात्रा शुरू करने वाला हूँ | जाने से पहले मैं अपने पुत्र के विषय में तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ |” डेविड मोर्स: “क्या तुम्हारा पुत्र भी है ?” राम भाऊ: “वह भारतीय समुद्र तट पर सब से अच्छा मोती निकालने वाला गोताखोर था | वह सब से अच्छा मोती ढूंड कर निकालना चाहता था | और उस ने उसे ढूंड कर निकाला भी | परन्तु वह बहुत देर तक पानी में रहा इस लिये उस के बाद वह बहुत जल्दी ही मर गया (रोने की आवाज) | क्योंकी तुम मेरे प्रिय मित्र हो इस लिये मैं वह मोती जिसे उस ने ढूंड कर निकाला था, तुम्हें देना चाहता हूँ !” डेविड मोर्स: “राम भाऊ, यह बहुत अच्छा है और बिलकुल ठीक है ! परन्तु मैं इसे किसी हालत में भी स्विकार नहीं कर सकता | मैं तुम्हें उस के लिये १०,००० रूपये दुंगा |” राम भाऊ: “परन्तु तुम उसे खरीद नहीं सकते !” डेविड मोर्स: “अगर उस की कीमत इस रकम से अधिक होगी तो मैं उस के लिये काम करूँगा |” राम भाऊ: “डेविड, यह मोती अनमोल है | मेरे पुत्र ने उस की कीमत अपने प्राण देकर अदा की है |” डेविड मोर्स: “राम भाऊ, बिल्कुल यही मैं तुम्हें परमेश्वर के विषय में बता रहा हूँ | उस के उद्धार का उपहार ख़रीदा नहीं जा सकता | न ही हमारे अच्छे कामों या तीर्थ यात्रा से | वह परमेश्वर का उपहार है, क्योंकी उस के लिये, परमेश्वर के पुत्र, यीशु, को अपने प्राण देने पड़े | क्या तुम आज यह उपहार स्विकार करना चाहोगे ?” राम भाऊ: “अब मैं समझ गया | इस के लिये उसे अपने पुत्र के प्राण देने पड़े | मैं आज ही उस के उद्धार के उपहार को स्विकार करना चाहता हूँ |” उद्धार परमेश्वर का उपहार है, जो तुम्हारे लिये भी है | लोग: वर्णन कर्ता, डेविड मोर्स, राम भाऊ © कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी |