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नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
बच्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक
78. लाव लिंग ने निर्णय लियालाऊ लिंग के सामने बड़ी समस्या थी | यह सत्य नहीं है, यह सत्य हो ही नहीं सकता | जीवित परमेश्वर आस्मान पर है, और ताक पर रखी हुई यह प्रतिमा मरी हुई मूर्ति के सिवा और कुछ नहीं है | उस के हाथ हैं परन्तु किसी की सहायता नहीं कर सकती | उस के पास मुँह है परन्तु बोल नहीं सकती | उस के पास कान हैं परन्तु सुन नहीं सकती | लोग उस की आराधना करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि जीवित परमेश्वर ने ऐसा करने के लिये मना किया है : मैं प्रभु तुम्हारा परमेश्वर हूँ, तुम मेरे सिवा किसी और परमेश्वर की आराधना न करना | लाऊ लिंग ने इस विषय में सोचा | लाऊ लिंग: “क्या यह मूर्ति जो हमारी ताक पर बैठी हुई है, वास्तविक सत्य परमेश्वर है ?” एक मसीही स्कूल में जहाँ वह पढ़ती थी, उस ने केवल एक सत्य परमेश्वर के विषय में सुना था | उस ने सीखा था कि परमेश्वर ने अपने पुत्र को दुनिया में भेजा था ताकि वह प्रत्येक व्यक्ति के पापों के लिये अपने प्राण दे सके | जब उस ने यह सुना कि आप तीन दिनों के बाद दोबारा जी उठे और अब स्वर्ग में रहते हैं तब वह बहुत प्रभावित हुई | लाऊ लिंग: “मैं जानती हूँ कि क्या करुँगी : हमारे घर में जो मूर्ति है उसे मैं आँगन में गाढ दूंगी | और यदि वह जीवित हो गई तो मैं समझ लुंगी कि वही सत्य परमेश्वर है |” लाऊ लिंग ने एक फावड़ा लिया, आँगन में गई और उस मूर्ति को गाढ दिया | वह आपनी कल्पना से प्रसन्न थी और घर में वापस गई | पहला दिन बीत गया | दूसरे दिन वह उस छोटी कबर पर गई और थोड़ी मिट्टी बाजू को हटा दी | वह प्रतिमा अब तक वहीं पड़ी हुई थी | वह तीसरे दिन की प्रतिक्षा न कर सकती थी | परन्तु उस दिन, दूसरों की तरह, वह मूर्ति जमीन में मरी हुई पड़ी थी | लाऊ लिंग: “अब मैं प्रभु यीशु पर विश्वास करती हूँ जिन्हों ने मेरे लिये अपने प्राण दिये और फिर जी उठे |” लाऊ लिंग ने सही निर्णय लिया और अक्सर महसूस किया कि जीवित परमेश्वर उस के साथ था और उस ने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा | परमेश्वर अपने वचन में कहता है : “मैं प्रभु, तुम्हारा परमेश्वर हूँ; तुम मेरे सिवा और देवताओं की आराधना न करो | मुझ से बढ़ कर तुम्हारे लिये और कोई वस्तु महत्वपूर्ण नहीं होनी चाहिये |” लोग: वर्णनकर्ता, लाऊ लिंग © कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी |