STORIES for CHILDREN by Sister Farida

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Home -- Hindi -- Perform a PLAY -- 031 (Alarm on the farm)

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नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
च्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक

31. खेत में खतरे की घंटी


क्या तुम टेकचंद को जानते हो ? वह दक्षिण अमरीका में खेत में रहता था | उस के जन्म दिन पर उसे एक असली मुर्गी का बच्चा उपहार के तौर पर मिला | टेकचंद ने स्वय : उस का पालन पोषण किया | होते होते वह बच्चा मुर्गी बन गया | उस के पीले रोयें सफ़ेद पंखों में बदल गये, इसी लिये टेकचंद ने अपनी मुर्गी का नाम श्रीमती सफ़ेद रखा | ओसारे में उस ने उस के लिये एक घोंसला बनाया था, और जब भी श्रीमती सफ़ेद अंडा देती तो वह सब को ऊंची आवाज में यह समाचार देती थी |

(कटकाटाहट)

जैसे जैसे खेतों में का अनाज ऊँचा बढ़ता गया, वैसे वैसे श्रीमती सफ़ेद ने और अंडे देना बंद कर दिया |

टेकचंद: “मामा, श्रीमती सफ़ेद को क्या हो रहा है ? अब वह अंडे नहीं दे रही और वह अनाज के खेतों में गायब हो जाती है |”

माँ: ”टेकचंद, जरा ठहरो |”

उस की माँ बोलते बोलते मुस्कुराई | और कुछ सप्ताह बाद, टेकचंद जान गया कि ऐसा क्यों हुआ |

टेकचंद: “मामा, मामा, देखो !”

श्रीमती सफेद खेत में से बच्चों के पूरे समुह के साथ चली आई | टेकचंद बहुत खुश था |

(सायरन बजने की आवाज)

एक दिन आग लगने से खतरे की घंटी की आवाज़ सुनाई दी | अनाज के खेत जल रहे थे | आग लगभग खेत में बने हुए घर तक पहुँच गई |

टेकचंद: “श्रीमती सफ़ेद कहाँ है ? क्या वह ...”

जब वह सारे खेत में ढूँड रहा था तब टेकचंद ने अंत तक वह विचार अपने मन में आने न दिया | परन्तु वह क्या था ? टेकचंद ने उसे अपने पाँव के पास जली हुई पाया | उस ने उसे उठाया | और उस मुर्गी के नीचे उस ने मुर्गी के बच्चों को पाया जो डरे हुए और एक दूसरे से सिमटे हुए थे |

टेकचंद: “यह कैसे संभव हो सकता है ?”

माँ: “जब खतरा निकट होता है तो जानवर तुरन्त जान जाते हैं | जब आग नजदीक आ गई तब बच्चों ने आपनी माँ से सुरक्षा माँगी | मुर्गी तो उड कर भाग गई होती परन्तु बच्चे उड़ नहीं सकते थे | श्रीमती सफ़ेद अपने छोटे बच्चों से प्रेम करती थी इस लिये उस ने अपने पंख उन के ऊपर फैला दिये और आग को बच्चों कि बजाय स्वय : अपने आप को जलाने दिया | उस ने स्वय : अपना बलिदान दिया ताकि उस के बच्चे जीवित रहें |”

पिता: “और यीशु के प्रेम की तुलना भी इस से की जा सकती है | टेकचंद हमेशा याद रखेगा कि यीशु ने स्वेच्छा से अपने प्राण दिये ताकि हम जीवित रहें |”


लोग: वर्णन कर्ता, टेकचंद, माँ, पिता

© कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी

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