Home -- Hindi -- Perform a PLAY -- 013 (Gifts for Jesus)
13. यीशु के लिये उपहार
सुशील अपने दादा को शिशु के पालने की कठपुतली बनाते हुए देख रहा था | वह बिलकुल असली दिखाई दे रहे थे - चरवाहे, यूसुफ और मरियम और शिशु यीशु | जैसे जैसे समय बीतता गया वह थक गया और सो गया |
उस ने स्वप्न में बैतलहम का अस्तबल देखा | सुशील ने सोचा, मैं सच मुच चरनी के निकट पहुँच सकता हूँ |
वह निकट आया और अचानक उदास हो गया | तब यीशु ने उस से बात की |
यीशु: “तू इतना दु:खी क्यों है ?”
सुशील: “क्योंकि मैं ने आप के लिये कोई उपहार नहीं लाये |”
यीशु: “दु:खी मत हो | मुझे तुझ से केवल तीन वस्तु चाहिये |”
सुशील: “मेरे पास जोकुछ भी है वह सब मैं आप को दे दुँगा | मेरी इलेक्ट्रिक ट्रेन, मेरे कम्पुटर के खेल और …”
यीशु: “नहीं, मुझे तुझ से यह सब नहीं चाहिये; मैं इस के लिये आस्मान से धर्ती पर नहीं आया |”
सुशील: “फिर आप क्या चाहते हैं ?”
यीशु: “मुझे अपनी गणित की अंतिम परिक्षा का पर्तिनाम दे दे |”
सुशील: “परन्तु मुझे उस में “डी” पद मिला |”
यीशु: “इसी कारण वह मुझे चाहिये | मेरे लिये हमेशा तुम्हारे जीवन की हर वह वस्तु लाओ जो तुम्हारे लिये अपर्याप्त है | क्या तुम ऐसा करोगे ?”
सुशील: “जी हाँ, मैं ऐसा ही करूँगा |”
यीशु: “दूसरा उपहार जो मुझे चाहिये वह तुम्हारा अनाज का कटोरा है |”
सुशील: “वह मैं आप को नहीं दे सकता क्योंकि मैं ने उसे तोड़ डाला है |”
यीशु: “इसी कारण वह मुझे चाहिये | मेरे लिये तुम्हारे जीवन की हर वह वस्तु लाओ जो टूटी हुई है | क्या तुम ऐसेकरोगे ?”
सुशील: “जी हाँ, मैं ऐसा ही करूँगा |”
यीशु: “अब मेरी तीसरी इच्छा यह है | सुशील, मैं तुम्हारा वह उत्तर चाहता हूँ जो तुम ने अपनी माँ को दिया जब उन्हों ने तुम से पूछा कि तुम्हारा अनाज का कटोरा कैसे टूटा |”
तब सुशील रोने लगा और उस का दिल टूट गया |
सुशील: “मैं ... मैं ने उन से झूट बोला |”
यीशु: “सुशील, तुम्हारे झूट, अवज्ञा, तुम्हारे जीवन की प्रत्येक दुष्ट वस्तु, तुम मेरे पास ला सकते हो - अपने पूरे जीवन भर | मैं तुम्हें क्षमा करूँगा और सीधे तरीके से जीने में सहायता करूँगा | मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम्हें जीवन का मार्ग बताऊंगा | क्या तुम्हें यह चाहिये ?”
और सुशील को इस की कितनी आवयश्कता थी ! तब से उस ने यीशु पर विश्वास किया और आप की बातें सुनीं |
लोग: वर्णन कर्ता, सुशील, यीशु की आवाज
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