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46. परमेश्वर की सन्तान कैसे बनना ५


हेती का कहर भयानक था | आँधी के बाद पहाड़ पर से खाई में चट्टानें गिर गईं और सारे गौंव को ढाँप लिया, वह गॉंव जिस में तारा रहा करती थी | परमेश्वर ने उस का जीवन बचाया | मिशन अस्पताल में तारा बहुत जल्द अच्छी हो गई | तारा को नर्सें पसंद करती थीं और उस की अच्छी प्रगति देख कर वे खुश थीं |

नर्स: “तारा अब तुम अच्छी हो गई हो | क्या तुम पढ़ना लिखना सीखोगी ?”

तारा: “जी हाँ, मैं सीखना चाहूंगी | परन्तु मुझे उस पुस्तक से डर लगता है |”

नर्स: “तुम्हें पवित्र शास्त्र से डरने की आव्यशकता नहीं है | उस में हम पढ़ते हैं कि यीशु बच्चों से प्रेम करते हैं |”

उस के बाद तारा हर दिन मिशन स्कुल को जाया करती थी | धार्मिक वर्ग में वह अपने कान बंद कर लेती थी परन्तु कभी कभी वह थोडा बहुत सुन लेती थी | जब शिक्षक “परमेश्वर की सन्तान” कहता था तब वह उस का अर्थ न समझ पाती थी | वह तुरन्त उस तावीज़ को पकड़ लेती थी जिसे उस ने आपनी गरदन में लटकाया था | एक लड़की उस पर हंस पड़ी | तारा डर गई और रोते हुए वर्ग के कमरे से भाग गई |

नर्स: “तारा, तुम क्यों रो रही हो ?”

तारा: “मेरी समझ में यह नहीं आता कि मैं परमेश्वर की सन्तान कैसे बन सकती हूँ ?”

नर्स: “पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई यीशु पर विश्वास करता है और आप से अपने जीवन का प्रभु बनने की बिन्ती करता है, वह व्यक्ति परमेश्वर की सन्तान बन जाता है |”

तारा: “यदि मैं ऐसा करुँगी तो मेरे पिता मुझे दंड देंगे | मुझे डर लगता है |”

नर्स: “हम उन के लिये प्रार्थना करेंगे कि वह भी एक दिन परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करें |”

तारा का साहस बढ़ा और उस ने प्रार्थना की |

तारा: “प्रभु यीशु, मैं आप पर विश्वास करती हूँ | मेरे पाप क्षमा कीजिये और मेरे जीवन में आईये |”

नर्स: “अब तुम परमेश्वर की सन्तान हो | और यीशु हमेशा तुम्हारे साथ हैं |”

तारा (प्रसन्न हो कर): “मैं परमेश्वर की सन्तान हूँ |”

कुछ समय बाद, उस के पिता उसे ले जाने के लिये आये | उसे एक पवित्र शास्त्र अलविदाई उपहार के तौर पर दिया गया | उस के पिता ने संदेहपूर्वक उस की ओर देखा और वापस घर पहुँचने तक खामोश रहा |

गौतम: “क्या तुम भी इस यीशु पर विश्वास करती हो ?”

तारा: “जी हाँ, पिताजी, मैं परमेश्वर की सन्तान हूँ | कृपया आप भी यीशु को अपने जीवन में स्विकार कर लीजिये | पवित्र शास्त् में कहा गया है कि जब तुम ऐसा करते हो तब तुम परमेश्वर की सन्तान बन जाते हो |”

तारा और कुछ बोल न पाई थि | उस के पिता ने वह पवित्र शास्त्र उस के हाथ से लिया, उसे फाड कर उस के हजारों टुकड़े किये और उन्हें हवा में उड़ा दिया |

और तब ?

अगला ड्रामा तुम्हें बतायेगा कि क्या हुआ |


लोग: वर्णनकर्ता, (मिशन केन्द्र/स्टशन की) नर्स, तारा, गौतम

© कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी

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