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47. आग लगाने वाला ६


रविवार की शाम को तारा बाहर बैठे हुए हेती के पहाड़ों से नीचे जाते हुए सूर्य को देख रही थी | वह बहुत खुश थी क्योंकि वह हाल ही में परमेश्वर की सन्तान बन गई थी | उस के पिता, गौतम ने जो जादूगर थे, उस का पवित्र शास्त्र लेकर फाड दिया था | परन्तु वह प्रभु यीशु को न ले सके क्योंकि उस ने आप को अपने दिल में रखा था | तारा अपने पिता पर क्रोधित न हुई जो आँगन में बैठे हुए आग से अपने आप को सेक रहे थे | वह उन से प्रेम करती थी | क्या उन्हें नये समाचार की जानकारी थी ?

तारा: “पिताजी, विजय हर रविवार को हमारे गाँव में सुसमाचार का संदेश सुनाने आता है |”

गौतम: “बेहतर है वह ऐसा न करे |”

गौतम, मुँह ही मुँह मे बुडबुडाया परन्तु उस ने यह न बताया कि उस दिन सवेरे वह गिरजे के पीछे झाँक कर आया था | वह लगातार विजय के संदेअश पर विचार करता रहा |

विजय: “यीशु ने मेरा जीवन बदल दिया | मैं आत्माओं के डर में रहता था और उन की सेवा करता था | परन्तु जब मैं ने परमेश्वर के प्रेम के विषय में सुना तब मैं विश्वास कर गया | अब मैं प्रसन्न हूँ और जानता हूँ कि यीशु हमेशा मेरे साथ हैं | मैं कभी अकेला न रहूँगा |”

गौतम उस छोटे घर में गया जिसे उस ने आत्माओं के लिये बनाया था |

गौतम: “ऐ आत्माओ, मुझे आपनी शक्ती बताओ | इस गिरजा पर आग गिरने दो और उसे जला डालो | क्या मैं तुम्हारी मदद करूं ?”

आधी रात के समय वह जलती हुई लकड़ी का टुकड़ा ले कर गिरजे में गया | वह हंसा और आग को घास की छत तक उठाया |

अचानक एक हाथ ने उस के बाजू को पीछे खींचा | वह जादूगर घबरा कर गिर गया |

गौतम: “विजय, तुम कहाँ से आ गये ?”

विजय: “यीशु ने मुझे भेजा ताकि मैं तुम से बात करूं | आप तुम से प्रेम करते हैं |”

गौतम: “क्या आप अब भी मुझ से प्रेम कर सकते हैं ? मैं ने आत्माओं की सेवा की, झूट बोला, तुम्हारी हत्या करना चाह और अब मैं गिरजा को जलाने जा रहा था | मैं ने तारा का पवित्र शास्त्र भी फाड डाला | और फिर भी आप मुझ से प्रेम कर सकते हैं ?”

विजय: “तुम्हारे हर एक पाप के लिये आप ने क्रूस पर अपने प्राण दे दिये | आप तुम्हें क्षमा करेंगे |”

गौतम: “मैं ने जो कुछ किया उस के लिये मुझे खेद है | मुझे शांति चाहिये और मैं अब परमेश्वर की सन्तान बनना चाहता हूँ |”

जादूगर ने यह सब गंभीरता से लिया | उस ने अपने सब जादू टोने जला दिये और नया जीवन आरंभ किया | जिस किसी ने उस का चमकता हुआ चहरा देखा वह प्रसन्न हुआ | परन्तु तारा तो सब से अधिक प्रसन्न हुई |

यीशु, हेती और हमारे साथ विजेता हैं | आप हर व्यक्ति को स्वीकार करते हैं जो आप के पास आता है और परमेश्वर की सन्तान बनना चाहता है |

“परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, अर्थात उन्हें जो उस के नाम पर विश्वास रखते हैं, उस ने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया |” (यूहन्ना १:१२) यह पवित्र शास्त्र कहता है |


लोग: वर्णनकर्ता, तारा, गौतम, विजय

© कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी

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