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11. यीशु का जन्म हुआ
(कई लोगों के पदचाप की आवाज)
राजा का संदेशवाहक: “ऐ नासरत के लोगो ! इधर आओ और राजा का आदेश सुनो ! जन गणना होगी | देश का हर नागरिक अपने अपने जन्म स्थान को लौट जाये ताकि उस की गिनती हो |
यह निश्चय ही अच्छी खबर नहीं है | परन्तु तुम्हारी गिनती होने के बाद तुम यहाँ लौट कर आ सकते हो | इस आज्ञा का पालन करो ! याद रखो: राजा कठोर है |”
नासरत के सब नागरिक चिन्तित हुये | कई लोग निराश हुये | राजा का आदेश उनकी योजनाओं के अनुसार न था परन्तु वह परमेश्वर की योजना के अनुकूल था |
मरियम और यूसुफ को भी इस लम्बे प्रवास के लिये तैयार होना था | यूसुफ, दाऊद राजा के वंश का था जिस के कारण उसे बैतलहम को लौट जाना था जो उसका जन्म स्थान था |
प्रवास करना आनंद दायक हो सकता है, परन्तु उस समय नहीं जब किसी को १०६ मील तक पैदल जाना हो !
मरियम के लिये यह प्रवास विशेषता कठीन था क्योंकि वह अपने पहले शिशु के जन्म की प्रतिक्षा कर रही थी |
वह पहले से जानती थी कि वह परमेश्वर के पुत्र की माता होगी, क्योंकि एक स्वर्गदूत ने उसे और यूसुफ दोनों को यह सुसमाचार दिया था |
यीशु, दुनिया का उद्धारकर्ता - यह परमेश्वर की अच्छी योजना थी |
बैतलहम का प्रवास ऐसे लगता था जैसे कभी समाप्त न होगा | वह पाँच दिनों से मार्ग पर थे | मरियम और यूसुफ ने स्वय : यह योजना अपने लिये न बनायीं होती | परन्तु यह परमेश्वर की योजना का एक भाग था और इस लिये उन्होंने आज्ञा का पालन किया |
बैतलहम में वे बहुत निराश हुये |
सराय का मालिक: “कोई जगाह नहीं है | सब कमरे दिये जा चुके हैं | किसी और जगह जा कर पूछिये | यहाँ से चले जाओ, यहाँ आप के लिये कोई कमरा नहीं है |”
दूसरी हर जगहों में भी उन के लिये दरवाजे बंद थे |
अंत में उन्हें एक ओसारे में जगह मिली |
ओसारा परमेश्वर की योजना थी |
और वहाँ, आधी रात को, एक आश्चर्यकर्म हुआ |
यीशु का जन्म हुआ | मरियम ने यीशु को लिया, आप को कपड़ों में लपेटा और चरनी में रख दिया |
परमेश्वर की योजना पूरी हुई |
कल्पना कीजिये, यह घट्ना घटने से ७०० साल पहले, परमेश्वर ने घोषणा की थी कि मसीह का जन्म बैतलहम में होगा |
परमेश्वर ने दुनिया से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपनी योजना पूरी की और हमें अपना पुत्र दे दिया |
लोग: वर्णन कर्ता, राजा का संदेशवाहक, सराय का मालिक
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