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94. बुरा अन्त:करण ६
रिंगु ने मिशनरी का वाद्ययंत्र चुराया था | अब उस का अंत:करण उसे परेशान कर रहा था | चोरी करने से किसी को आनंद नहीं मिलता | क्या तुम्हें भी ऐसा अनुभव हुआ है ? तुम ने किसी दुकान में से या अपनी माँ के बटवे में से कुछ उठा लिया हो तो इस से कुछ फरक नहीं पड़ता | उसे फिर से सुलझाने का एक मात्र मार्ग है |
रिंगु ने यह मार्ग स्विकार किया | उस ने यीशु से क्षमा मांगी और चुराई हुई वस्तु लौटना चाही |
उस ने सांडों को गाड़ी में जोता और वाद्ययंत्र को उस में रखा |
बत्तू: “रिंगु, तुम क्या कर रहे हो ?”
रिंगु: “मैं वाद्ययन्त्र वापस देने जा रहा हूँ |”
बत्तू: “तुम पागल तो नहीं हो गये हो ? जब तुम उसे लौटने जा रहे हो तो उसे चुराया ही क्यों था ? जब से तुम ने यीशु पर विश्वास करने की ठान ली है तब से मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा |”
रिंगु: “गाडी में चढ़ जाओ ! गाडी चलाते चलाते मैं तुम्हें सब कुछ बता दुंगा |”
रिंगु को शहर पहुँचने की जल्दी थी |
वह खुश था क्योंकी उसे श्रीमती मरियम तुरन्त मिल गईं | वह भारत में पवित्र शास्त्र का अनुवाद करती थीं |
श्रीमती मरियम: “तुम दोनों को नमस्कार | कितना अच्छा हुआ जो तुम आ गये | मुझे तुम से कुछ सहायता लेनी है | मुझे अपने अनुवाद के लिये कुछ कुर्क शब्द नहीं मिल रहे | क्या तुम मेरी सहायता करोगे ?”
रिंगु: “जी हाँ, परन्तु सब से पहले मुझे साहिब ग्रब से मिलना है |”
श्रीमती मरियम: “वह यहाँ नहीं हैं | वह बहुत बीमार थे | एक हवाई जहाज उन्हें वापस उन के घर, अमरीका, ले गया | परन्तु डॉक्टर उन की कोई सहायता न कर सके | साहिब ग्रब अब स्वर्ग में हैं |”
रिंगु: “साहिब अब स्वर्ग में हैं ? प्रभु यीशु के साथ ? निश्चय ही वह वहाँ बहुत खुश होंगे | परन्तु वह अब हमारे बीच में यहाँ न
रहे |”
श्रीमती मरियम: “नहीं, अब वह हमारे बीच में यहाँ नहीं हैं |”
इस समाचार से रिंगु बहुत उदास हो गया | वह रो पड़ा |
श्रीमती मरियम: “देखो, मेरे पास उन की एक तस्वीर है | क्या तुम उसे अपने पास रखना चाहोगे ?”
रिंगु: “आप का बहुत धन्यवाद | यह मेरे साहिब हैं जिन्हों ने मुझे प्रभु यीशु के बारे में बताया |”
श्रीमती मरियम: “रिंगु, परमेश्वर के पास तुम्हारे जीवन के लिये एक योजना है | मेरा विश्वास है कि वह चाहता है कि तुम उस के विषय में दूसरों को बताओ |”
रिंगु: “परन्तु मैं ने कुछ चुराया था, वाद्ययंत्र, वह गाडी में रखा है |”
अब सब रहस्य खुल गया था | और रिंगु कर्तव्य मुक्त हो गया था |
श्रीमती मरियम ने उसे क्षमा कर दिया | अपने कन्धों पर का बोझ हलका हो जाने से वह गाडी में कूदा और चुराई हुई वस्तु लौटा दी |
रिंगु: “श्रीमती मरियम, अलविदा | दूसरे समय जब मैं तुम से मिलुंगा तब कई और कुर्क शब्द बताऊंगा | परन्तु अभी कुछ जलाने की लकड़ी ढ़ूँड़नी चाहिये |”
और यात्रा करते हुए उस ने प्रार्थना की |
रिंगु: “प्रभु यीशु, मुझे क्षमा करने के लिये आप का बहुत धन्यवाद | कृपया साहिब को बताईये कि मैं ने वाद्ययंत्र लौटा दिया है | अब मैं बहुत प्रसन्न हूँ और आप की सेवा करना चाहता हूँ |”
बत्तू: “रिंगु, क्या तुम मुझे यीशु के विषय में बता सकोगे ?”
रिंगु: “हाँ, आप के विषय में मैं तुम्हें हर रोज कुछ न कुछ जरूर बताऊंगा |”
लोग: वर्णनकर्ता, रिंगु, बत्तू, श्रीमती मरियम
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