STORIES for CHILDREN by Sister Farida(www.wol-children.net) |
|
Home عربي |
Home -- Hindi -- Perform a PLAY -- 098 (Punishment and promise 2) This page in: -- Albanian -- Arabic? -- Armenian -- Aymara -- Azeri -- Bengali -- Bulgarian -- Cebuano -- Chinese -- English -- Farsi -- French -- Fulfulde -- German -- Greek -- Guarani -- Hebrew -- HINDI -- Indonesian -- Italian -- Japanese -- Kazakh -- Korean -- Kyrgyz -- Macedonian -- Malayalam? -- Platt (Low German) -- Portuguese -- Punjabi -- Quechua -- Romanian -- Russian -- Serbian -- Slovene -- Spanish-AM -- Spanish-ES -- Swedish -- Swiss German? -- Tamil -- Turkish -- Ukrainian -- Urdu -- Uzbek
नाटक -- अन्य बच्चों के लिए अभिनीत करो !
बच्चों द्वारा अभिनय करने के लिए नाटक
98. दंड और वचन २स्त्री: “यह वर्षा आखिर कब रुकेगी ?” आदमी: “क्या नूह हर प्रस्थिति में सही था ?” (जहाज़ पर मुक्के मारने की आवाज) सब लोग: “नूह, हमारी सहायता करो ! दरवाजा खोलो, हमें अन्दर आने दो !” अब बहुत देर हो चुकी थी | परमेश्वर ने स्वय : दरवाजा बंद कर दिया था | लोगों ने उस की बात न सुनी थी और अब परिणाम स्वरूप उन्हें यह भुगतना था | जो लोग परमेश्वर के विरुद्ध निर्णय लेते हैं उन का परिणाम हमेशा ऐसा ही होता है | पानी ऊंचा चढ़ता गया | यह सब वैसे ही हुआ जैसा परमेश्वर ने कहा था, वर्षा, वर्षा, वर्षा के ४० दिन और ४० रात | निराश हो कर लोग छतों और पहाड़ों पर चढ़ गये | परन्तु सब से ऊंचा स्थान भी पानी में १६ फुट डूबा हुआ था | हर जीवित वस्तु इस महा बाढ में ड़ूब गई | केवल नूह और उस के साथ जो भी जहाज़ में थे वह बच गये | पानी को उतरने में पूरा एक साल लगा | नूह: “पता नहीं जमीन फिर से सूख गई है या नहीं | मैं एक कौवा बाहर भेजूँगा |” नूह ने एक कबूतर को भी इसी तरह से भेजा | वह जानना चाहता था कि इन पक्षियों को जमीन पर उतरने के लिये कोई जगह मिलती भी है या नहीं | परन्तु उन्हें कोई सूखी जगह न मिली और वे जहाज़ में वापस आगये | एक सप्ताह बीत गया | नूह: “मैं एक और कबूतर को उडाता हूँ |” (खिडकी के खुलने और पक्षी के पंखों के फड़फड़ाने की आवाज) श्रीमती नूह: “देखो ! वह अपनी चोंच में एक हरी टहनी ले कर आ रहा है |” नूह: “अब और देर न होगी |” जब नूह ने कबूतर को तीसरी बार उड़ाया तब वह वापस ही नहीं आया | एक साल के बाद पानी बह गया था और ज़मीन फिर से सूख गई थी | परमेश्वर ने कहा: “नूह, अपने परिवार के साथ जहाज़ से बाहर निकल जाओ | और सब पक्षी और प्राणी वे सब जिन्हें बचाया गया था, जहाज़ में से निकल कर सूखी ज़मीन पर चले गये | यदि तुम नूह होते तो सब से पहले तुम ने क्या किया होता ? उस ने परमेश्वर के लिये बलिवेदी बनाई और बलिदान किया | इस तरह से उस ने उस के उद्धार के लिये धन्यवाद कहा | नूह ने अपना जीवन परमेश्वर को दिया | और इस से परमेश्वर प्रसन्न हुआ | परमेश्वर ने कहा: “मैं इस के बाद फिर कभी बाढ़ से ज़मीन का नाश नहीं करूँगा | जब तक ज़मीन अस्तित्व में है, गर्मी और शीत ॠतू, दिन और रात भी अस्तित्व में रहेंगे | मैं तेरे साथ एक वाचा बांधुंगा | इस वाचा का चिन्ह इन्द्रधनुष होगा |” आकाश में पहला इन्द्रधनुष प्रगट हुआ, उस में कितने सुंदर रंग थे | और वह आज तक हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर ईमान्दार है | वह अपना वचन पूरा करता है | तुम उस पर १०० प्रतिशत विश्वास कर सकते हो | जब कभी तुम इन्द्रधनुष देखो तो उस के विषय में सोचो | लोग: वर्णनकर्ता, दो आदमी, स्त्री, नूह, श्रीमती नूह, परमेश्वर © कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी |