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120. नये व्यक्ति का आगमन ४


लूकस को धक्का लगा | उस की सब से अच्छी कलाकृती ज़मिन पर टूटी हुई पड़ी थी | अब वह कभी कोई पुरस्कार जीत नहीं सकता था | लूकस, जो बाहरी व्यक्ति था, दूसरों को सिद्ध करना चाहता था कि वह किसी एक वस्तु में तो भी अच्छा था | परन्तु अब उस की कलाकृती नष्ट हो चुकी थी |

लूकस को अनेते पर शक आया परन्तु वह उसे सिद्ध नहीं कर सकता था |

अब वह कई बार पहाड़ पर के अपने स्विटजरलैंड के घर को छोड़ कर जाया करता था | वह अक्सर अकेला एक पेड़ के ठूँठ पर बैठा करता था और कोई न कोई क्लाकृति बनाता रहता था |

आदमी: “मेरे बेटे, तुम बडे अच्छे कलाकार हो |”

चौकन्ना हो कर लूकस ने चारों ओर देखा | यह वही बूढ़ा आदमी होगा जो नगर में अपनी झोपडी में अकेला रहा करता है | उस के विषय में सभी लोग गुप्त रूप से बोला करते हैं | परन्तु उस व्यक्ति की मैत्रीपूर्ण आँखों ने लूकस को उस पर विश्वास करने पर मजबूर किया |

आदमी: “मेरे साथ आओ और मैं तुम्हें अपनी बनाई हुई कलाकृतियाँ बताऊंगा |” (दरवाजे के खुलने की आवाज)

लूकस: “बढ़िया ! क्या आप ने यह सब कलाकृतियाँ बनाईं ?”

आदमी: “किसी दिन तुम भी ऐसी ही अच्छी कलाकृतियाँ बनाओगे | केवल अपने किसी मित्र के लिये |”

लूकस: “मेरा कोई मित्र नहीं है |”

आदमी: “तब तो तुम अत्यन्त जिझासु हो | क्या तुम मुझे अपनी समस्स्यायें बताना चाहोगे ?”

लूकस: “डेनी अपाहिज है | हर व्यक्ति यह सोचता है कि मैं ने उसे खाई में नीचे धकेल दिया | प्रत्येक व्यक्ति मुझ से घ्रणा करता है | अनेते मुझ से सब से अधिक घ्रणा करती है | और मैं भी उस से घ्रणा करता हूँ |”

आदमी: “हम सब अपने जीवन में गलत काम करते हैं, यहाँ तक कि मैं भी | मैं शराब और जुए के कारण कर्जदार बन गया | एक बैंक को लूटते हुए मैं पकड़ा गया | मेरी समझ में न आ रहा था कि क्या करूं ?”

लूकस: “और फिर अकेलापन ?”

आदमी: “मैं अब भी अकेला हूँ परन्तु जब मैं काराग्रह से बाहर आया तब मैं ने यीशु के साथ नया जीवन शुरू किया |”

लूकस: “आप के कोई रिश्तेदार हैं ?”

आदमी: “मेरी पत्नी अब जीवित नहीं रही और मेरे दो पुत्र यह सोचते हैं कि मैं भी मर गया हूँ | एक व्यापारी है और दूसरा प्रतिष्ठित सर्जन है | उस ने कई लोगों की सहायता की है ताकि वे फिर से चल सकें | इस समय वह इसी शहर के एक होटल में रहता है |”

लूकस के विचार उस के सर में घूमने लगे | क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि उस के मन में कौन सी योजना आई होगी ?

बूढ़े आदमी ने उस लड़के के कंधे पर प्रेम से अपना हाथ रखा |

आदमी: “लूकस, तुम ने अपनी समस्सया के विषय में मुझ पर विश्वास किया | क्या तुम प्रभु यीशु से भी अपनी घ्रणा के बारे में बात न करोगे और आप से हर वस्तु ठीक करने की बिन्ती न करोगे ?”

जब लूकस की आँखों से उस के चहरे पर आँसू गिरने लगे तब वह लज्जित नहीं हुआ | उस ने प्रभु यीशु से क्षमा माँगी | उस का दिल सभी पापों से साफ किया गया |

यह इतना आसान है | लूकस के लिये ही नहीं बल्कि तुम्हारे लिये भी |

और अनेते ? उस के विषय में तुम अगले ड्रामे में और बातें सुनोगे |


लोग: वर्णनकर्ता, लूकस, आदमी

© कॉपीराईट: सी इ एफ जरमनी

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